Saturday 11 March 2017

शिक्षा गुणवत्ता

उम्र भर गालिब यही भूल करता रहा
धूल तो मेरे चेहरे पर थी, और मैं आईना साफ करता रहा
मिर्जा गालिब की यही बात वर्तमान में ’शिक्षा गुणवत्ता पर भी सार्थक सिद्ध हो रही है। पढने-पढाने के क्षेत्र में हर कोई एक दूसरे की धूल झाड़ने में लगा है... शिक्षक अफसरों की, अफसर शिक्षक-कर्मचारियों की और पालक पूरे सिस्टम की... खैर, चलिए बात करते हैं शिक्षा गुणवत्ता की...

आज भी ‘शिक्षा और रक्षा‘ उतने ही दोनों ही मुद्दे उतने ही चुनौतीपूर्ण है जितने आजादी के पहले थे। यदि रक्षा संबंधित किसी कार्ययोजना या माड्यूल में त्रुटी हो तो थोडे प्रयास से इसे सुधारा जा सकता है लेकिन शिक्षा की कार्ययोजना या माड्यूल में किसी भी स्तर पर हुई छोटी से छोटी त्रुटी या कमी का खामियाजा पूरी एक पीढी को भुगतना पडता है। कई मन, मस्तिष्क और दिमाग बेकार हो जाते हैं जब शिक्षा व्यवस्था में थोडी सी चुक होती है। 

एन.सी.एफ. 2005 की प्रस्तावना में प्रो यशपाल पाल की लिखी शुरूआती पंक्तियां आज भी सार्थक है जो ये बताती है कि ये बात सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण है कि हमारे बच्चों को क्या और कैसे पढाया जाए? तो इसका बस यही जवाब मिलता है कि आने वाली नस्ल को मन, मस्तिष्क और दिमाग का ऐसा इस्तेमाल करना सीखाया जाए जो स्वयं के, समाज के और देशहित में सिद्ध हो। जिसमें जातिगत बंटवारे का भाव न हो। जो प्रकृति संरक्षण को अपना कर्तव्य माने, जो हमारी सांस्कृतिक विरासतों को संजो सके। जिस दिन भावी नागरिक का मन, मस्तिष्क और दिमाग सही दिशा में कार्य करेंगे तो समझ लिजिए आ गई शिक्षा में गुणवत्ता। 

वर्तमान में हमारा देश भले ही पोलियो मुक्त हो गया है लेकिन हमारी शिक्षा व्यवस्था आज भी पोलियोग्रस्त ही है। यदि शिक्षा संस्थानों की बात की जाए अच्छी शिक्षा के नाम पर आज हमारे पास क्या है ? एम्स, आईआईटी, एनआईआईटी, आरटीसी, सीटीई, एनसीआरटी आदि ऊंगलियों पर गिनाए जाने वाले संस्थान? वहीं यदि प्रदेश स्तर पर मलाईदार विभागों की फेहरिस्त तैयार की जाए तो शिक्षा विभाग या शिक्षा से जुडे सभी विभाग ऊपर की ओर दिखाई देंगे। मानो शिक्षा माननीयों और सफेदपोशों की व्यक्तिगत राजस्व बटोरने का साधन हो गई है। संसाधनों की बंदरबांट और शैक्षिक ह्रास में हम व्यापम जैसे घोटाले को अंजाम देने से भी नहीं चुके।

विभिन्न संचार माध्यमों से चैंकाने वाली बातें -

- जैसे, देश में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता के संदर्भ में एनुअल स्टेटस आॅफ एजुकेशन ने विगत वर्षों में एक रिपोर्ट तैयार की। इसके मुताबिक देश की कक्षा पांच के आधे से अधिक बच्चे कक्षा दो की किताब भी ठीक से नहीं पढ सकते।

- गत वर्षों में जारी 'राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संस्थान’ (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के अनुसार इस वक्त देश में निजी ट्यूशन ले रहे विद्यार्थियों की कुल संख्या करीब 7.1 करोड़ है, जो कुल विद्यार्थियों की संख्या का 26 फीसदी है। हालांकि यह सिर्फ सीमित संसाधनों का प्रयोग कर जुटाया गया आंकड़ा है, इसलिए विद्यार्थियों की यह संख्या और भी अधिक होने की संभावना है।  

- वर्तमान में हमारे प्रदेश में प्राथमिक माध्यमिक स्तर पर करीब एक लाख से अधिक शिक्षकों की आवश्यकता है। जबकि विभिन्न प्रदेशों को मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर ये आंकडा दस गुना से ज्यादा हो जाता है।
- प्रदेश की करीब एक चैथाई से शालाओं में विद्यार्थियों को समग्र छात्रवृत्ति योजना के तहत पिछले शैक्षिक सत्र की छात्रवृत्तियां लेने के लिए बहुत जिद्दोजहद करनी पड रही है, क्योंकि इसमें विभिन्न विभागों का समन्वय नही हो पा रहा है। 

- हाल ही में आयोजित ‘‘मिल बांचे मध्यप्रदेश‘‘ कार्यक्रम में अशासकीय लोगों की भागीदारी बहुत कम रही। वहीं कई विभागों के अफसर व कर्मचारियों ने इसे जबरदस्ती का सौदा समझ कर सिर्फ खानापूर्ति कर ली। यहां तक की हमारे माननीयों ने अपने स्कूली—कॉलेज अनुभव सुनाने की बजाए शिक्षकों की क्लास भी ले ली। मीडिया माध्यमों के अनुसार खानापूर्ति करने वालों की संख्या 50 फीसदी से अधिक होने की संभावनाएं है।

- कई योजनाओं का क्रियान्वयन होने के बाद भी हमारी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में से सूचना और प्रोद्योगिकी और कौशल विकास का आभाव स्पष्ट है। प्रदेश स्तर पर तो इसमें हालत और भी खराब है।
 
वहीं यदि बात की जाए बजट की तो...
इस सत्र के आम बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए करीब 79.68 हजार करोड़ रूपए का आवंटन किया गया। इसमें से स्कूली शिक्षा प्राथमिक और सीनियर सेकेंडरी) के लिए  करीब 46.35 हजार करोड़ रुपए और शेष उच्च शिक्षा के लिए आवंटित किया गया है। लेकिन विकसित देशों के मुकाबले जिनकी हम बराबरी करने की बात करते हैं,ये फंडिंग बहुत कम है। जबकि हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बडी अर्थव्यवस्था मानी जाती है।
इनसे परे बात की जाए सुधार की तो तीन पहलू हैं - विद्यार्थी, पालक और शिक्षक लेकिन अघोषित रूप् से इनके दायरे इतने संकुचित हैं कि ये पंक्तियां सार्थक सिद्ध होती हैं-
‘बंद कमरे में मेरी सांसे घुट जाती हैं। अगर खिडकी खोलता हूं तो जहरीली हवा आती है।‘
शिक्षा प्रणाली का मूल आधार माने जाने वाले ये तीनों तत्वों को अपने अपने स्तर पर सुधार करना होगा। तीनों तत्वों को अपने विकसित दायरे का भान करवाना होगा। पालक को पोषण, नैतिकता, पर्यावरण संरक्षण, परिवार, समाज में रहनसहन की जिम्मेदारी कानूनी स्तर पर सौंपनी होगी। वहीं शिक्षक को पाठ्यक्रम से परे अध्यापन की आजादी भी होनी चाहिए।  

शिक्षा गुणवत्ता में विभिन्न कमियों को देखते हुए कुछ सुझाव भी सामने आए हैं...

- हमारे देश में अभिरूचि के अनुसार उच्च शिक्षा संस्थान तों वहीं अभिरुचि के नाम पर स्पोट्र्स होस्टल भी हैं। लेकिन कोई भी अभिरुचि का माध्यमिक विद्यालय नहीं है। अब हमारे यहां शिक्षक पर पूर्व प्राथमिक कक्षाओं में विद्यार्थी की अभिरूचि की पहचान की जिम्मेदारी भी सौंपनी होगी। अभिरुचि आधारित इन विद्यालयों में माध्यमिक कक्षाओं में विद्यार्थी की अभिरुचि के अनुसार दक्षता प्रदान करनी होगी। क्योंकि इंसानी बुद्धि सिर्फ रटकर प्रथम अंकों से उत्तीर्ण होने तक सीमित नहीं है। विद्यार्थियों को इस बात का अवबोध कराना होगा कि हमारी बुद्धि हमारी सम्पत्ति है, इसे सही दिशा में खर्च करना होगा।

- जैसे लोकतंत्र के मूलभूत तीन आधार स्तंभ हैं विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। वहीं मीडिया को चैथा स्तंभ माना गया है। ऐसे ही शिक्षातंत्र को लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ बनाना होगा। क्यों की वर्तमान की शिक्षा ही देश का भविष्य तय करती हैै। 

- हमारे शासकीय विद्यालय बाल शिक्षण (6-14 आयु वर्ग के बच्चों) के लिए कार्य कर रहे हैं। जबकि शिशु शिक्षण के लिए संचालित आंगनवाड़ी और प्रौढ़ शिक्षा के लिए कार्यरत सतत् शिक्षा केन्द्रों का सम्बंध विद्यालय से कहने भर को है। वास्तव में इन सभी के बीच बेहतर तालमेल जरूरी है। यदि इन तीनों एजेंसियों को एकीकृत कर दिया जाए तो 3 से 50 वर्ष तक के लिए शिक्षण की बेहतर व्यवस्था सम्भव है।

- वर्तमान में विद्यार्थियों के संदर्भ में कहा जाता है- तालिम भी अजब सा नशा है, किताबें खोलते ही नींद आ जाती है। इसलिए शिक्षा के ऊबाऊपन और बस्ते को बोझ को कम करना भी आव’यक है। 

- इतिहास गवाह है कि अब तक कोई भी संघ या सस्था ने शिक्षा की गुणवत्ता के लिए किसी प्रकार का आंदोलन नहीं किया है। सारे आंदोलन व हडतालें वेतन, पदोन्नति, संविलियन की भेंट चढ गए हैं। इसका प्रत्यक्ष फायदा शिक्षक की जेब पर हुआ है और हमारे शिक्षक ‘माट्साब‘ हो गए हैं। ऐसे में शासन की उम्मीद और कार्य का भार बढना स्वाभाविक है। प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक स्तर के शिक्षक जो शिक्षा की बुनियाद रखने में महत्ती भूमिका निभाते हैं उनपर अध्यापन के आलावा कई काम थोंप दिए गए हैं। वे डाकिया हैं, बीएलओ हैं, सर्वेयर हैं, प्रेरक हैं, बैंककर्मी हैं, यहां तक की स्वास्थ्य और सफाई कर्मचारी भी हैं। शिक्षकों को इन कार्यों से दूर कर अध्यापन की मुख्यधारा से जोडना सार्थक पहल होगी। 

— शिक्षकों की व्यवसायिक और नैतिक गुणवत्ता पर भी कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए किसी हारी हुई टीम को रिकवर करने का उदाहरण बढिया है। जैसे किसी हारी हुई टीम के खिलाडियों को मानसिक तौर पर रिकवर करने के लिए किसी विशेष प्रकार के मनोचिकित्सक की स्पीच की जरूरत होती है वैसे ही हमारे शिक्षक भी 'सिस्टम गेम' से हार गए हैं, इन्हें भी माइंडवॉश की जरूरत है। इसके लिए प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है। 

- यह अत्यंत आवश्यक है कि समग्र शिक्षा व्यवस्था को नियंत्रित किए जाने हेतु राज्य की विशेष शिक्षा नीति तैयार की जानी चाहिए। जैसे बच्चों को शिक्षा का अधिकार है वैसे ही शिक्षकों को स्वतंत्र शिक्षण का अधिकार दिया जाए। इसके लिए प्रायवेट सेक्टर की भांति शिक्षकों को निर्धारित समय में निर्धारित ज्ञान को सीखाने का और क्षमता विकास का टारगेट दे दिया जा सकता है। इसके लिए मूल्यांकन प्रणाली में भी आवश्यक सुधार करने होंगे। गौरतलब है कि वर्तमान में मूल्यांकन का मुख्य आधार लेखन कौशल है। 

- विभिन्न सर्वे के अनुसार देश में में हर 18 से 20 किमी में संस्कृति और परिवेश में बदलाव देखा जा सकता है। इसलिए जिला या संभाग स्तर पर पाठ्यक्रम निर्माण की व्यवस्था हो। शिक्षण विधियों में परिवर्तन करने का अधिकार शिक्षकों व शिक्षाविदों को हो, प्रशासनिक अधिकारियों को नहीं। 

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब हर बच्चे की हर क्षमता का हर तरह से विकास होना है। भले वह कक्षा या स्कूल जाए या ना जाए। शिक्षक को यह बात भी ध्यान रखनी होगी कि वह सिर्फ बच्चों को नहीं पढा रहा है बल्कि वह भविष्य के महात्मा गांधी, अब्दुल कलाम, टैगोर, विवेकानंद, भविष्य के ध्यानसिंह, तेन्दुलकर, मिल्खासिंह आदि का निर्माण कर रहा है। वह उस समाज की आधारशीला रख रहा है जो भारत का भविष्य तय करेगा।
 
अब तक जो चल रहा था बीत गया लेकिन अब कुछ यूं करना होगा-
कुछ ऐसी तालीम बना दे मेरे मौला
किताब की बात किरदार में नजर आए...
                                                                                                                           सचिन.. 09826091791

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