Friday 12 August 2011

अलबेली है बारीश

देखो कैसी अलबेली है बारीश,
भीगाकर खत्म करती आंसुओं की साजिश।
 धो दी इसने जमीं कुछ ऐसी,
खुशीयां गम धो देती जैसी।

बूंदे जो मंदिर पर गिरती, मस्जिद पर गिरती
जैसे गंगा—आबेजमजम की फितरत परस्ति।
राम वालों सीखों, रहीम वालों सीखों
कैसे हरा और भगवा एक करती।

देखो खुश है धरती का लाल
उम्मीद है टुटेगा गरीबी का मलाल
अब दीवाली नहीं होगी सुनी
ईदी भी होगी अब दुनी।

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