Wednesday 20 July 2011

फुटबॉल में भी कहो चक दे इंडिया...

आजकल मीडिया में क्रिकेट और राजनीति के साथ भारतीय फुटबॉल टीम की विश्वकप क्वालिफाइंग मुकाबलों की खबरें भी देखी जा सकती हैं। भारतीय टीम ने हाल ही में हुए एक मैत्री मैच में कतर को मात देकर सभी फुटबॉल प्रेमियों का हौसला तो बढ़ाया है, लेकिन पूर्व कड़वे अनुभवों से कोई भी ठोस नतीजे की उम्मीद नहीं लगाई जा रही है। यह दूसरी बात है कि ठोस नतीजे के नहीं देने के कारण उपेक्षा का शिकार होने वाला भारतीय फुटबॉल अद्वितीय इतिहास का भी प्रतिनिधित्व करता है। आज की आवरण कथा भी भारतीय फुटबॉल के यादगार पहलुओं पर प्रकाश डालती है।

भारत में फुटबॉल के इतिहास पर गौर किया जाए तो यही सामने आता है कि यह आजादी के पहले भी काफी लोकप्रिय था। इस खेल को अंग्रेज भारत में लाए थे। शुरुआती फुटबॉल मैच आर्मी टीमों के बीच खेले जाते थे। जल्द ही देश में फुटबॉल क्लब बनने लगे। दिलचस्प बात यह है कि इनमें से कई क्लब फीफा जैसे मॉडर्न फुटबॉल ऑर्गनाइजेशन से भी पहले बन चुके थे। अगर मध्यप्रदेश के फुटबॉल स्तर के बारे में आज के परिपे्रक्ष्य में कहा जाए, तो बहुत से लोगों को फुटबॉल की सही जानकारी नहीं है। इसी संदर्भ में फुटबॉल कोच हारून खान कहते हंै कि गोवा और बंगाल की भांति हमारे प्रदेश में भी प्रतिभाओं का अंबार लगा हुआ है, लेकिन अधिकांश लोगों को पेशेवर फुटबॉल की जानकारी ही नहीं है। वहीं फुटबॉल कोच उस्मान खान मानते हैं कि बाईचुंग भूटिया के यूरोपीय क्लब से खेलने के अलावा भी कुछ ऐसे भी आंकड़े हैं, जो हमारे आश्चर्य को सातवें आसमान पर चढ़ाने के लिए काफी है।

पुणे एफसी बनाएगी  नया इतिहास

इंग्लिश प्रीमियर लीग (ईपीएल) में खेलने वाली ब्लैकबर्न रॉवर्स 22 जुलाई को पुणे एफसी से प्रदर्शनी मैच खेलेगी। भारतीय फुटबॉल के इतिहास में यह पहला मौका होगा, जबकि ईपीएल की कोई टीम भारतीय क्लब से मैच खेलेगी। यह मैच पुणे के बालेवाड़ी के शिव छत्रपति स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में खेला जाएगा, जो पुणे एफसी को घरेलू मैदान भी है। लैंकशर का यह क्लब भारतीय उपमहाद्वीप के दौरे पर आने वाली पहली ईपीएल टीम भी होगी। साथ ही पुणे एफसी इस तरह से ईपीएल क्लब का सामना करने वाला पहला भारतीय क्लब भी बन जाएगा। पुणे एफसी के निर्देशक नंदन पिरामल ने कहा, 'भारतीय फुटबॉल प्रेमियों के लिए यह खास मुकाबला होगा और हमें बहुत खुशी है कि हमारी टीम रोवर्स के खिलाफ मैदान पर उतरेगी। हम भी इस मैच को खेलने वाली पहली भारतीय टीम बनने को लेकर उत्साहित हैं और गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। यह मैच फुटबॉल प्रेमियों के लिए स्वर्णिम अवसर होगा और वह इसे नहीं गंवाना चाहेंगे।Ó यह भी बताया गया कि ब्लैकबर्न की टीम में क्रिस सांबा, पॉल रॉबिंसन, डेविड डन, ब्रेट इमर्टन, डेविड होलेट, जैसन रॉबर्ट्स, मॉर्टन पैडरसन, माइकल सालगाडो, मार्टिन ओलसन, स्टीवन जोंजी और रियान नेल्सन जैसे खिलाड़ी हैं। पुणे एफसी अगले सत्र के लिए चुने गए अपने खिलाडिय़ों को उतारेगा और उसे भरोसा है कि उनकी टीम अच्छी चुनौती पेश करेगी।

आयुष्मान ने दिया मैनचेस्टर सिटी और चैल्सी में ट्रायल

कुछ दिनों पहले नोएडा स्टेडियम से खबर काफी जोरों पर थी कि अशोका फुटबॉल एकेडमी के खिलाड़ी आयुष्मान चतुर्वेदी ने इंग्लैंड के मैनचेस्टर सिटी और चैल्सी क्लब के लिए ट्रायल दिया। अगस्त में ट्रायल का रिजल्ट घोषित किया जाएगा। चयन होने के बाद चतुर्वेदी को इंग्लैंड के फुटबॉल  क्लब की तरफ से खेलने का मौका मिलेगा। एकेडमी के कोच अनादि बरुआ ने बताया कि अंडर-16 ग्रुप के खिलाड़ी आयुष्मान पहले भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्हें विश्वविख्यात मैनचेस्टर सिटी और चैल्सी क्लब के लिए ट्रायल देने का मौका मिला है। उन्होंने बताया कि आयुष्मान एकेडमी में फुटबॉल की ट्रेनिंग ले रहा है। इससे पहले वह वर्ष 2010 में अंडमान निकोबार में हुई 56वीं नेशनल स्कूल गेम्स में भी भाग ले चुका है। बता दें कि जून के अंतिम सप्ताह में इंग्लैंड में ट्रायल हुए। इसका रिजल्ट अगस्त के पहले सप्ताह में आने की उम्मीद है। गौरतलब है कि आयुष्मान के दादा अभय चतुर्वेदी ख्याति प्राप्त फुटबॉल, क्रिकेट और हॉकी के कमेंटेटर रहे हैं।

700 करोड़ का करार

कुछ समय पहले मुकेश अंबानी के एक करार ने भारतीय फुटबॉल को दौलत की बुलंदियों पर पहुंचा दिया है। मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस आईएनजी ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के साथ 15 सालों के लिए करार किया है। यह करार 700 करोड़ रुपए में हुआ। भारतीय फुटबॉल के इतिहास में इतनी मोटी रकम कभी भारतीय
फुटबॉल संघ को किसी कंपनी से नहीं मिली। इस करार के बाद मुकेश अंबानी की कंपनी को भारतीय फुटबॉल के टेलीकॉस्ट मार्केटिंग और ऑन ग्राउंड राइट्स मिले हैं। यह भी बताया गया कि  700 करोड़ रुपए की रकम फुटबॉल संघ को किश्तों में दी जाएगी।

वीएच ग्रुप ने खरीदा ब्लैकबर्न रोवर्स

इंग्लिश प्रीमियर लीग के क्लब को खरीद लेना दुनिया में भारतीय पूंजी की बढ़ती ताकत और हैसियत दोनों की निशानी है। पिछले साल की यह चर्चाएं जोरों पर रहीं कि भारत के वेंकटेश्वर हेचरिज (वीएच) ग्रुप ने ईपीएल के क्लब ब्लैकबर्न रोवर्स को खरीदने का का सौदा चार करोड़ साठ लाख पौंड यानी तकरीबन सवा तीन अरब रुपए में कर लिया है। अनुबंध के बाद सौ फीसदी मालिकाने के साथ यह कंपनी ईपीएल में क्लब रखने वाली पहली भारतीय कंपनी बन जाएगी। खास बात यह है कि ईपीएल दुनिया की सबसे महंगी लीग है और इंग्लैंड में क्लब खरीदना खेल के जरिए अपने ब्रांड के प्रचार में दिलचस्पी रखने वाले दुनिया-भर के पूंजीपतियों का सपना होता है। अतीत में मुकेश और अनिल अंबानी द्वारा भी ईपीएल क्लब खरीदने की कोशिशों की चर्चा रही है, हालांकि बाद में दोनों भाइयों ने इससे इनकार किया था। लक्ष्मी मित्तल इंग्लैंड के सेकंड डिवीजन के क्लब क्वींस पार्क रेंजर्स के मालिकों में जरूर शामिल हैं, लेकिन प्रीमियर लीग में खेलने वाला कोई क्लब पहली बार भारतीय मालिकाने में देखा जा रहा है।


आदर्श हैं बाईचुंग भूटिया
इंग्लिश फुटबॉल जगत में जो स्थान डेविड बैकहम और रुनी, फ्रांस में जिनेदिन जिदान, पुर्तगाल में क्रिस्टियानो रोनाल्डो व ब्राजील के रोनाल्डो, काका और रोनाल्डिनियो का है, वही स्थान भारतीय फुटबॉल में बाईचुंग भूटिया का है। सिक्किम के इस हीरे को निखारने में अहम योगदान कोच थुपडेन रबग्याल का रहा है। इन्हीं के देखरेख में भूटिया का खेल दिनोदिन निखरता गया। भूटिया के खेलने का यह आलम था कि उन्हें मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही ताशी नंग्याल अकादमी (गंगटोक) की ओर से फुटबॉल की साई स्कॉलरशिप मिल गई। उन्होंने 1992 में अंडर-16 सब जूनियर में ढाका (बांग्लादेश) में हुए टूर्नामेंट में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 16 वर्ष की उम्र में  ईस्ट बंगाल क्लब की ओर से खेलने लगे। इसके ठीक दो साल बाद ही बाईचुंग राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने में कामयाब हो गए। वर्ष 1995 में बाईचुंग जेसीटी मिल्स की टीम में शामिल हो गए और 1997 में पहली बार नेशनल फुटबॉल लीग जिताने में भूटिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही। काठमांडू (नेपाल) में दक्षिण एशियन फुटबॉल फेडरेशन टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन की बदौलत भूटिया को 1996 में प्लेयर ऑफ द ईयर चुना गया। वहीं वर्ष 1998 व 1999 में सैफ खेलों में भारत की जीत में बाईचुंग का अहम योगदान रहा। भूटिया के इस उत्कृष्ट प्रदर्शन को सभी ने सराहा और 1999 में एशियन प्लेयर ऑफ द मंथ भी चुना गया। उसी साल भूटिया को सिक्किम पुरस्कार से और अर्जुन पुरस्कार से भी नवाजा गया। इसके अलावा बाईचुंग इंग्लैंड के सेकंड डिवीजन लीग में बरी एफसी क्लब की ओर से खेलने वाले पहले भारतीय फुटबॉलर होने का गौरव प्राप्त किया। भारत सरकार ने भी बाईचुंग के प्रदर्शन का सम्मान करते हुए उन्हें वर्ष 2008 के पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। इतना ही नहीं घरेलू फुटबॉल को बढ़ावा देने के लिए बाईचुंग ने कुछ समय पहले पुर्तगाली कोच कालरेस क्विरोज की पुर्तगाल फुटबॉल अकादमी के साथ समझौता-पत्र पर हस्ताक्षर कर बाईचुंग भूटिया फुटबॉल स्कूल (बीबीएफएस) खोला है। बता दें कि इस स्कूल में गरीब बच्चों को मुफ्त में उत्कृष्टष्ट कोचिंग मिल सकेगी। भारतीय टीम के सुधार के मामले में बाईचुंंग का मानना है कि उत्कृष्ट कोच के अलावा टीम को ज्यादा से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय मैच खेलने पर ध्यान देना होगा।

कौन कहता है फुटबॉल में पैसा नहीं है

अगर आप यह सोचते हैं कि भारतीय पेशेवर फुटबॉल में पैसा नहीं है, तो आप गलत हो सकते हैं। इसी साल 1 जून को मोहन बागान ने नाईजीरिया के स्ट्राइकर ओडाफे ओनएका ओकोली से एक साल के लिए रिकार्ड दो करोड़ रुपए का अनुबंध किया, जो भारतीय फुटबॉल इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा करार है। गौरतलब है कि ओडाफे आई लीग में सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले फुटबॉलर हैं। उनकी पूर्व टीम चर्चिल ब्रदर्स उन्हें एक साल के लिए एक करोड़ से ज्यादा राशि देती थी। मोहन बागान ने आज क्लब में इस खिलाड़ी से अनुबंध की घोषणा की। क्लब ने हालांकि इस नाईजीरियाई को दिए जाने वाली सही राशि का खुलासा नहीं किया है, लेकिन सूत्रों ने कहा कि उन्हें वेतन के रूप में 1.6 करोड़ रुपए मिलेंगे, जबकि अन्य भत्तों के रूप में उन्हें 30 से 40 लाख रुपए मिलेंगे। इतना ही नहीं दूसरे देशी-विदेशी खिलाड़ी भी भारतीय क्लबों में उच्चस्तरीय सुविधाओं के साथ नेम और फेम कमाते देखे जा सकते हैं।

काश! उस समय शूज मिल जाते...
फुटबॉल में भारत की ये दुर्दशा पहले ऐसी नहीं थी। भारत में फुटबॉल शुरुआत से लेकर वर्ष 1970 तक काफी सराहा गया। भारतीय फुटबॉल टीम विश्व की अच्छी टीमों में आती थी। इस दौरान भारत ने पहली और आखिरी बार फुटबॉल विश्व कप में भाग लिया। हालांकि, इस स्पर्धा में भारत ने एक भी मैच नहीं खेला। नंगे पैर फुटबॉल खेलने के कारण भारतीय टीम को स्पर्धा का एक भी मैच नहीं खेलने दिया गया और फुटबॉल शूज पहन कर खेलने की आदत न होने के कारण भारत ने फुटबॉल शूज पहन कर खेलने से मना कर दिया। इसके बाद वर्ष 1951 और 1962 में दो बार भारतीय टीम एशियन चैम्पियन बनी। वर्ष 1956 में भी भारतीय टीम ने ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन किया और चौथा स्थान हासिल किया। वर्ष 1962 के बाद भारतीय फुटबॉल टीम को खुशी का मौका अगस्त 2007 में मिला, जब टीम ने पहली बार नेहरू कप जीता। भारत में इस खेल की दुर्दशा वर्ष 1970 के बाद शुरू हुई। जिम्मेदार लोगों ने इस ओर से अपना ध्यान हटा लिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि अन्य एशियन टीमों के मुकाबले भारतीय टीम पिछड़ती चली गई।

कौन लेगा जिम्मेदारी

भारत में फुटबॉल के नियंत्रण की जिम्मेदारी आल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन (एआईएफएफ) की है। लेकिन फुटबॉल को अपने पुराने स्तर पर लाने के लिए न ही कभी कोई योजना बनती है और अगर बनती भी है, तो उस पर अमल नहीं होता। सितम्बर 2006 में ऐसा ही एक समझौता भारत ने ब्राजील के साथ किया था, जिसके अनुसार दोनों देशों को मिलकर एक ऐसी स्कीम तैयार करना था, इसके अंतर्गत ब्राजीलियन एक्सपर्ट भारतीय खिलाडिय़ों और कोचों को फुटबॉल की बारीकियां सिखाते, लेकिन इसका असर भारतीय फुटबॉलरों पर अभी तक दिखाई नहीं दे रहा है। फुटबॉल के विकास के लिए गुजरात राज्य के कोच गोपाल काग का कहना है कि यह केवल मीडिया, प्रशासन या एसोसिएशन का काम नहीं है, बल्कि आम जनता को भी फुटबॉल के प्रचार में अपनी भागीदारी करना होगी। काग यह भी कहते हैं कि लोगों को इस बात को समझना होगा कि किसी भी परिवर्तन में समय लगता है। फुटबॉल में भारत को भी एक अच्छा स्थान बनाने में समय लगेगा। साथ ही काग इस बात को भी स्वीकारते हैं कि फुटबॉल में विकसित राज्यों से प्रेरणा लेकर अन्य राज्यों में भी नई नीतियों की आवश्यकता है।


राज्यों का फुटबॉलनामा

पश्चिम बंगाल
जहां संस्कृति है फुटबॉल

आज के कोलकाता को देश में फुटबॉल का गढ़ कहा जाए तो गलत नहीं होगा। बंगाल में फुटबॉल की शुरुआत नागेंद्र प्रसाद सर्वाधिकारी ने 1877 में की हेयर स्कूल में फुटबॉल टीम को शुरू करके की। सर्वाधिकारी को भारतीय फुटबॉल का पितामह कहा जाता है। इसके बाद यहां ढेरों फुटबॉल क्लब बने। इनमें प्रमुख हैं, मोहन बागान एथलेटिक क्लब (1889), जो बाद में नेशनल क्लब ऑफ इंडिया कहलाया। फुटबॉल बंगाल की संस्कृति का हिस्सा बन गई है। हर तबके का इंसान फुटबॉल से जुड़ा है। बॉलीवुड स्टार मिथुन चक्रवर्ती ने तो बंगाल फुटबॉल एकेडमी बनाने के लिए चंदा तक मांगा है। साथ ही यहां पूर्व भारतीय क्रिक्रेट कप्तान सौरव गांगुली को भी एक निजी क्लब की ओर से फुटबॉल खेलते देखा जा सकता है।

गोवा
ईसाई शिक्षा का हिस्सा था फुटबॉल

फुटबॉल को गोवा की सभ्यता से जोड़कर देखा जाता है। इसकी शुरुआत यहां 1883 में हुई, जब आइरिश पादरी फादर विलियम रॉबर्ट लियोंस ने इसे ईसाई शिक्षा का हिस्सा बनाया। आज गोआ पश्चिम बंगाल, केरल और नॉर्थ ईस्ट के राज्यों के साथ देश में फुटबॉल का केंद्र बन चुका है। यहां तमाम प्रतिष्ठित फुटबॉल क्लब हैं जैसे, सलगांवकर, डेंपो, चर्चिल ब्रदर्स, वॉस्को स्पोर्ट्स क्लब और स्पोर्टिंग क्लब डि गोआ आदि। इसके अलावा गोवा के कई खिलाडिय़ों ने भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है। इनमें प्रमुख हैं, ब्रह्मानंद संखवालकर, ब्रूनो कुटिन्हो, मॉरिसिओ अफोंसो, रॉबर्टो फर्नांडिस। ये सभी भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान रह चुके हैं।

केरल
1890 से शुरू हुआ जूनून

केरल भी देश के उन राज्यों में से है, जहां फुटबॉल  की पूजा होती है। यहां फुटबॉल का इतिहास 1890 तक जाता है, जब महाराजा कॉलेज तिरुअनंतपुरम के केमेस्ट्री के प्रोफेसर बिशप बोएल ने युवाओं को फुटबॉल खेलने की प्रेरणा दी। 1930 के दशक में राज्य में कई फुटबॉल क्लब बने। यहां फुटबॉल का एक स्थानीय रूप सुपर सेवन्स फुटबॉल बहुत प्रचलित है। इसमें दोनों तरफ सात-सात खिलाड़ी खेलते हैं। केरल ने कई सफल और मशहूर फुटबॉल खिलाड़ी भी दिए हैं। इनमें से प्रमुख हैं आईएम. विजयन, वीपी. साथयन, एनपी. प्रदीप, के. अजयन और सुशांत मैथ्यू।

मिजोरम
फुटबॉल के जरिए होती है समाजसेवा

नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में भी फुटबॉल काफी लोकप्रिय है। मिजोरम में यह स्थानीय लोगों का सबसे मनपसंद टाइम पास खेल भी माना जाता है। आमतौर पर फुटबॉल को पुरुषों का खेल माना जाता है, लेकिन मिजोरम में लड़कियां भी इस खेल में महारथ रखती हैं। राज्य में फुटबॉल की दीवानगी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एड्स के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए संगठनों ने रेड रिबन फुटबॉल टूर्नामेंटों का आयोजन किया था। हाल ही में राज्य सरकार ने ऐलान किया है कि वह फुटबॉल के मैदान के लिए अमेरिका से कृत्रिम घास मंगाएगी।

मणिपुर
मशहूर है फीमेल स्टार्स

मणिपुर को फुटबॉल के मंदिरों वाला राज्य कहा जाता है। यहां फुटबॉल एक धर्म की तरह जिया जाता है। मणिपुर में भी फुटबॉल अपनी फीमेल स्टार्स की वजह से पॉपुलर है। इस छोटे से राज्य में विमिंस मणिपुर फुटबॉल फेडरेशन के 450 से भी अधिक मेंबर हैं। मणिपुर की महिला फुटबॉल टीम ने 1993, 1995, 1998, 2000, 2001, 2002, 2003, 2005 में ऑल इंडिया वुमेंस फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब जीता है। कुमारी देवी, लोकेशोरी देवी और सुरमाला चानू यहां की मशहूर फुटबॉल कोच रही हैं।


सिक्किम
1973 में गोवा को 10-0 से हराया

सिक्किम में भी फुटबॉल ने अपनी जड़ें उस समय जमाईं, जब यह खेल भारत में पनप रहा था। सिक्किम के बाहर पहली जीत करने वाला स्थानीय फुटबॉल क्लब था कुमार स्पोर्टिंग क्लब। यह जीत उसने 1948 में दर्ज की थी। 1973 को सिक्किम के फुटबॉल इतिहास में टर्निंग पॉइंट माना जाता है, इस साल गोवा ने इसे 10-0 से हराया था। इसके बाद 1976 में सिक्किम फुटबॉल क्लब का गठन किया गया। सिक्किम फुटबॉल तब से लगातार पनप रहा है। सिक्किम का नाम उसके मशहूर फुटबॉल प्लेयर बाईचुंग भूटिया ने भी रोशन किया है। बाईचुंग को इंडिया फुटबॉल का पहला पोस्टर बॉय कहा गया है। वह पहला भारतीय फुटबॉल  प्लेयर है, जिसने इंग्लैंड में प्रोफेशनल फुटबॉल टीम का भी प्रतिनिधित्व किया है।



अकसर लोग कहते हैं कि भारत में फुटबॉल का जूनून एकदम शून्य है, लेकिन कुछ प्रतियोगिताएं ऐसी भी हैं, जो खिलाडिय़ों के साथ दर्शकों को भी रोमांचित कर देती हैं। इनमें न केवल देशी खिलाड़ी जोर आजमाइश करते देखे जा सकते हैं, बल्कि विदेशी खिलाडिय़ों की भरमार भी देखी जा सकती है। आइए जाने इनके बारे में...


फेडरेशन कप- 1977 में शुरू हुई इस प्रतियोगिता को फेड कप के नाम से भी जाना जाता है। नॉकआऊट स्टाइल का यह टूर्नामेंट आई-लीग के बाद दूसरा स्थान रखता है। यह भी कहा जाता है कि इसी से प्रेरणा लेकर नेशनल फुटबॉल लीग (वर्तमान में आई लीग) की शुरुआत की गई। इसके विजेता को आई लीग के विजेता के साथ एएफसी चैम्पियंस लीग में प्रतिस्पर्धा करने का मौका मिलता है।
डूरंड कप- इसे 1888 में भारत के विदेश सचिव मोर्टिमर डूरंड द्वारा शिमला में शुरू किया गया था। यह मूल रूप से भारत में तैनात ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक मनोरंजन के रूप में शुरू किया गया था। डूरंड कप में दो बार दो विश्व युद्धों के दौरान निलंबित कर दिया गया था। 1940 में इसका स्थान शिमला से नई दिल्ली स्थानांतरित कर दिया गया।
संतोष ट्रॉफी- संतोष ट्राफी वार्षिक भारतीय फुटबॉल प्रतियोगिता है, जो राज्यों और सरकारी संस्थानों के मध्य खेली जाती है। इसकी विजेता  श्रेणी में सबसे ऊपर प. बंगाल का नाम देखा जा सकता है। गौरतलब है कि बंगाल के नाम 31 खिताब हैं। 
आइएफए शील्ड- आइएफए शील्ड भारतीय फुटबॉल एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक वार्षिक फुटबॉल प्रतियोगिता है। यह भी आश्चर्यजनक तथ्य है कि यह दुनिया में चौथी सबसे पुरानी क्लब प्रतियोगिता है।
आई लीग- पेशेवर फुटबॉल को प्रोत्साहन देने के लिए 2006 में नेशनल फुटबॉल लीग को आई लीग के रूप में परिवर्तित किया गया। इसके हर सीजन में औसतन 14 क्लबों का मुकाबला देखा जा सकता है। पेशेवर खिलाडिय़ों की भरमार के कारण इसे इंग्लिश प्रीमियर लीग का छोटा रूप भी कहा जा सकता है।

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