Saturday 18 June 2011

पापा आप कहां हो...


हमेशा मुझे फुटबॉल से मना करने वाले मेरे पापा कईं दर्शकों के साथ छिप कर मेरा मैच देखा करते थे। शायद उन्हीं की दुआएं रही की मैं नेशनल चैम्पीयन​शिप में भा​गीदारी कर पाया। हालांकि, उन्होंने मुझे कभी मैदान में जाने की इजाजत नहीं दी, लेकिन जब मैं सुबह—सुबह किसी कारण से प्रेक्टिस के​ लिए मैदान पर नहीं जा पाता था, तो उन्हें मां से यह कहते भी सुना था कि आज सचिन ग्राउंड में क्यों नहीं गया है? कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं है? मैं जब भी स्कूल जाता तो मां से बिना बताए मुझे चोरी से एक—दो रुपए देना आज भी याद आता है। उन सिक्कों में कोई खास पुंजी नहीं थी, लेकिन उस वक्त मैं खुद को किसी करोडपति से कम नहीं आंकता था। पापा द्वारा खुद के बचपन की यादें बताना, मुझे किसी गलती पर जोर से चिल्लाना, उनके साथ मजाक मस्ती करना और ऐसी कईं यादों में न जाने क्या बात है कि उन्हें एक बार वापस लाने के लिए कुछ भी लुटाने को दिल चाहता है। 
पापा अपने बच्चे का सलाम कबूल करना...
 अगर आपके भी अपने पापा के साथ कुछ खास पल हैं, तो आप मुझसे शेयर कर सकते हैं।

2 comments:

  1. Very Touchy... It is really nice that you can express your feelings for your father in this manner... All the Best!!!

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  2. waqt nikalo aur graund par wapas jaya karo.. tumhe waha aaj bhi kuch milegaa

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